Hello aspirants आज हम प्रत्यक्ष रूप से भौतिक भूगोल की शुरुआत करेंगे । यह नोट्स आसान भाषा में लिखे गए है । और इन notes में Dristi ias notes in hindi, vision IAS, निर्माण IAS और utkarsh IAS जैसी coachings के ias और pcs एग्जाम के notes से समायोजित कर के बनाए गए है । जिन के द्वारा प्रत्येक पक्ष को कवर किया गया है , और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की इसमें pre exam के फैक्ट एवं महत्वपूर्ण बातों को highlight भी किया गया है, जिससे आपको पढ़ने में कोई भी समस्या नही होगी। और जिस किसी ने भी पिछले वाला besic geography का artical नही देखा है वो उसे जाकर देख ले क्योंकि उसके बिना भौतिक भूगोल को समझने में काफी परेशानी होगी उस artical का link नीचे दे दिया गया है। तो फिर चलिए भौतिक भूगोल की शुरुआत, भारत की भू गर्भिक संरचना से करते है।
Drishti ias notes in hindi
→ भारत की भू गर्भिक संरचना के अंतर्गत शैल संरचनाओं (चट्टानों की प्रवृत) का तथा इसमें पाए जाने वाले खनिज संसाधनों का अध्ययन किया जाता है।
→भूगर्भिक दृष्टिकोण से भारत में पृथ्वी की प्राचीनतम आर्कियन प्री केम्ब्रियन काल की चट्टानों से लेकर पृथ्वी की नवीनतम प्लीस्टोसीन एवं होलोसीन काल की चट्टाने पाई जाती है। इनमें आग्नेय, अवसादी, रूपान्नतरीत तथा पुनःरूपान्नतरीत चट्टानों की विविधता है। इन्ही चट्टानों में विविध प्रकार के खनिजो के भण्डार पाए जाते हैं, जो भारत के औद्योगिक विकास तथा आधारभूत संरचना के विकास के लिए आधारभूत महत्व रखते है।
→चट्टानों से ही मृदा का निर्माण होता है अतः चट्टानों में विविधता के कारण भारत मे मृदा में भी विविधता पाई जाती है। मृदा संसाधन राष्ट्र के कृषि विकास, पशुपालन, तथा वानिकी का आधार है।
→स्पष्ट : भारत की भू गर्भिक संरचना केवल भौतिक दृष्टिकोण से ही नही बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्व रखती है।
→ भारत पृथ्वी के प्राचीनतम महाद्वीप पैंजिया के विखण्डन से उत्पन्न गोडवाना लैण्ड का प्रत्यक्ष भाग है अत: दीर्घ काल तक यह भू-गर्मिक क्रियाए और बाह्य क्रियाए घटित होती रही। इसके कारण ही चट्टानी संरचना में पर्याप्त विविधता और संरचनात्मक सपन्नता पाई जाती है।
भारत में पाई जाने वाली प्रमुख भू-गर्भिक संरचनाएं निम्न लिखित है।
आर्कियन संरचना
धारवाड संरचना
कुड़प्पा संरचना
विंध्ययन संरचना
गोडवाना संरचना
दकन ट्रेप सरचंना
टर्शियरी संरचना
क्वार्टरनरी संरचना
आर्कियन संरचना→
→ आर्कियन संरचना पृथ्वी की प्रारंभिक आधारभूत शैल संरचना है जिसमे आग्नेय, तथा आग्नेय रूपांतरित चट्टाने पाई जाती है इसमे ग्रेनाइट, नीस/नाइस, शीस्त जैसी चट्टाने मिलती है। आधारभूत संरचना के रूप में यह भारत में हिमालय से लेकर प्रायद्विपीय पठार तक पाई जाती है। हिमालय में अधिक गहराई में इन चट्टानों की उपस्थिती है।
→प्रायद्विपीय पठारी भारत में लगभग दो तिहाई भाग में आर्कियन संरचना का विस्तार है। यंहा तमिलनाडू, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, उडीसा छोटा नागपुर पठार तथा दक्षिणी-पूर्वी अरावली क्षेत्र में यह संरचना प्रमुखता से पाई जाती है।
महत्व : 1. भारत की विभिन्न शैल संरचनाओं का निर्माण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आर्कियन सरंचना द्वारा ही हुआ है।
2. इसमे जीवाश्म नही पाए जाते लेकिन धात्विक एवं अधात्विक खनिजों के भण्डार मिलते है जैसे लोहा, मैग्नीज, अभ्रक जैसे खनिज पाए जाते है।
3. इस सरंचना में ही भारत के परमाणु ऊर्जा खनिजों के भण्डार स्थित है। यहां यूरेनियम तथा थोरियम के भण्डार है। झारखण्ड के सिंहभूम की जादूगोड़ा में यूरेनियम के भण्डार स्थित है। भारत में विश्व का सर्वाधिक थोरियम के भण्डार स्थित है।
→स्पष्ट: आर्कियन संरचना कई दृष्टिकोण से आर्थिक महत्व रखता है। भारत के परमाणु शक्ति सपना सम्पन्नता तथा थोरियम आधारित ऊर्जा कार्यक्रम का यह प्रमुख आधार है।
धारवाड़ संरचना→
→ आर्कियन सरचना के निर्माण के बाद इसके विखण्डन तथा अवसादी करना एवं रूपान्तरण की प्रक्रिया से धारवाड़ संरचना का निर्माण हुआ, अतः यह अवसादी रूपान्तरीत चट्टानों के रूप में स्थित हैं।
→इसकी उत्पत्ति प्री केम्ब्रियन काल के प्रारम्भ में प्रायद्विपीय पठार के वृहद क्षेत्रो में हुई है। हिमालय क्षेत्र में भी कही-कही धारवाड़ सरचनाएँ स्थित है, लेकिन हिमालय क्षेत्र में यह सतह उपस्थित नहीं है।
→इसका विस्तार कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, उड़ीसा, झारखण्ड, अरावली क्षेत्र तथा महाराष्ट्र में सर्वाधिक है। कर्नाटक के धारवाड़ एवं शिमोगा क्षेत्र के आधार पर ही नामकरण किया गया है।
→ झारखण्ड एवं उड़ीसा की सीमा पर धारवाड़ संरचनाए, लोह अयस्क श्रेणी के रूप में स्थित है।
महत्व :- 1.धारवाड संरचना में प्री केम्ब्रियन काल में अरावती पर्वत की उत्पत्ति हुई । अरावली पृथ्वी की प्राचीनतम वलित पर्वत है और यह क्षेत्र विविध प्रकार के धात्विक एवं अधात्विक खनिज संसाधनों में सम्पन्न है।
2. इस संरचना में कही धात्विक एवं अधात्विक खनिजों के भण्डार स्थित है। और इसका दोहन व्यावसायिक दृष्टि से किया जाता है।
3.यह संरचना धात्विक खनिजों के लिए सर्वाधिक महत्व रखता है यहाँ भारत में धात्विक खनिजों के सर्वाधिक भण्डार है।
4. यह लोहा, मेग्नीज, तांबा, काॅपर , कोबाल्ट, क्रोमाईट गोल्ड/सोना जैसे कई धालिक खनिजों के भण्डार है।
→स्पष्ट धारवाड़ संरचना आर्थिक दृष्टिकोण से भारत के लिए आधारभूत महत्व रखता है। यहाँ की खनिज कई उद्योगों के लिए प्रमुख कच्चे माल है, भारत वर्तमान में लोहा इस्पात उद्योग में विश्व में दुसरे स्थान पर है। लोहा इस्पात किसी भी राष्ट्र के आधारभूत संरचना के विकास तथा मशीनरी उद्योग सहित विविध प्रकार के परिवहन साधनो के विकास के लिए आधारभूत होते है। अत: धारवाड संरचना में स्थित संसाधन भारत के आर्थिक विकास का एक प्रमुख आधार है।
कुडप्पा संरचना→
→कुडप्पा संरचना प्री केम्ब्रियन काल में धारवाड़ संरचना के निर्माण के बाद चट्टानों के विखण्डन, निक्षेपण तथा अवसादीकरण की प्रक्रिया से निर्मित हुई इसका विस्तार प्रायद्विपीय पठार में धारवाड संरचना के क्षेत्रों में असबध्द (कटे-फटे रूप में, ) रूप से है।
→इसका सर्वाधिक विस्तार आन्ध्रप्रदेश के कुडप्पा क्षेत्र में है। इसके अतिरिक्त ओडिशा, छत्तीसगढ, झारखण्ड , कर्नाटक तथा गुजरात एवं राजस्थान के अरावली में है।
महत्व 1. इस संरचना मे धात्विक एवं अधात्विक दोनों खनिजों के भण्डार पाए जाते है जिसका व्यवसायिक उपयोग किया जा रहा है।
2. यहाँ लोह अयस्क मैग्नीज चूना पत्थर , बलुआ पत्थर, एस्बेस्टस जैसे खनिज के भण्डार है।
3.यह संरचना भी आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है हालांकि धारवाड संरचना की तुलना मे इसमें खनिजों के भण्डार कम पाए जाते है। यहाँ चूना पत्थर के पर्याप्त भण्डार स्थित है जो सीमेंट उद्योग का प्रमुख कच्चा माल है।
गोंडवाना सरचना →
→ यह पेल्योजोइक महाकल्प में केम्ब्रियन से लेकर डिवोनियन काल तक भारत में विशेष भू-गर्भिक क्रियाए घटित नही होई। ऐसे में किसी प्रमुख संरचना का निर्माण नही हुआ इस समय ओडोविसीयन से डिवोनियन काल तक हिमालय की प्रारम्भिक शैल संरचनाओं का निमार्ण प्रारम्भ हुआ। महत्वपूर्ण परिवर्तन कार्बोनिफेरस काल से प्रारम्भ हुआ।
कार्बोनिफेरस काल में गोंडवाना संरचना की उत्पत्ति हुई जो पर्मियन काल में भी विकसित होती रही।
गोडवाना सरचंना प्रायद्विपीय पठार पर विस्तृत कोयला खनिज प्रदान संरचना है, अत: यह जीवाश्म आधारित संरचना का क्षेत्र है। इसकी उत्पत्ति कार्बोनिफेरस काल में उत्पन्न संघन वनस्पतियों के सतह के नीचे दबने और रूपान्तरण से हुई है यह प्रक्रिया कार्बोनिफेरस काल से जुरैशिक काल तक घटित होती रही।
→ कार्बोनिफेरस काल में ग्लोप सप्टोरिस फ्लोरा तथा टेलिफाइलम क्लोरा जैसी वनस्पतिया उत्पन्न हुई। इन वनस्पतियों के रूपान्तरण मे ही कोयला खनिज आधारित गोंडवाना सरचना का निर्माण हुआ ।
वनस्पति →पीट → लिग्नाईट → बिटुमिनस → एन्थ्रासाईट
→ गोडवाना सरचंना का विकास प्रायद्विपीय पठार मे मुख्यतः नदी घाटी क्षेत्रों में है, इनमें दामोदर, ब्रह्माणी, महानदी, सोन, नर्मदा, गोदावरी, वर्धा नदी घाटियों के क्षेत्र में है इसमें दामोदर नदी घाटी में गोंडवाना संरचना का सर्वाधिक विस्तार है।
1. गोंडवाना संरचना में कोयले के सर्वाधिक भण्डार स्थित है यहां देश का 95% से अधिक कोयले के भण्डार है।
2. देश के कोयला उत्पादन का 92% से अधिक गोडवाना संरचना से ही प्राप्त होती है।
3. यहाँ बिटुमिनस प्रकार का कोयला का भण्डार है। और यह अच्छे किस्म का कोयला होता है।
4.कोयला भारत में ऊर्जा, और विद्युत ऊर्जा का सबसे बड़ा या प्रमुख स्त्रोत है।
5.देश के विद्युत उत्पादन का 50% से अधिक कोयला आधारित ताप विद्युत केन्द्रो से प्राप्त होती है।
6.लौहा इस्पात उद्योग, सीमेन्ट उद्योग तथा अन्य कई उद्योगो मे कोयले का उपयोग प्रमुख कच्चे माल के रूप में किया जाता है अत: इनका औद्योगिक महत्व भी है।
7.भारत कोयले का निर्यातक भी है।
→स्पष्ट गोंडवाना संरचना आर्थिक दृष्टिकोण और ऊर्जा के रूप में आधारभूत संरचना के रूप में गोंडवाना संरचना का व्यापक महत्व है, भारत ऊर्जा के अन्य पारम्परिक स्त्रोतों की अपेक्षाकृत कम उपलब्धता की स्थिती में गोंडवाना संरचना में स्थित कोयला ऊर्जा खनिज का महत्व और भी बढ़ जाता है।
दकन ट्रेप संरचना →
→ प्रायद्विपीय पठारी भारत में लगभग 5 लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्र में दकन ट्रेप संरचना का विस्तार है। यह बेसाल्ट चट्टानों (ज्वालामुखी का लावा ठंडा होने के बाद बनी चट्टानें) से निर्मित संरचना है जिसकी उत्पत्ति ज्वालामुखी क्रिया के दरारी उद्गार के कारण हुई है।
→ क्रिटेशियस काल के अंत में प्रायद्विपीय पठार पर ज्वालामुखी क्रिया घटित हुई जिससे उत्पन्न मैग्मा का जमाव सतह के नीचे और सतह के ऊपर सोपानाकार रूप में हुआ, जिसे ढकन ट्रेप कहते है।
मैप के क्षेत्रो के नाम→
1.काठियावाड़ पठार, (गुजरात)
2.महाराष्ट्र पठार
3.मालवा पठार (मध्यप्रदेश), तेलगांना पठार (तेलगांना)
4.कर्नाटक में मेसूर एवं बंगलूरू की उच्च भूमि
5.तमिलनाडु में कोयम्बदुर एवं मदुरई की उच्च भूमि।
→ यह क्षेत्र दकन लावा पठार के रूप में स्थित है। ट्रेप के रूप मे कुछ भाग छोटा नागपुर पठार मे भी स्थित है।
महत्व
1. यह प्रायद्विपीय पठार में दकन ट्रेप संरचना से ही दकन लावा पठार की उत्त्पति हुई है। जो आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
2.लावा पठार की काली मिट्टी का विकास दकन ट्रेप की बेसाल्ट चट्टानो से हुई है यह मृदा कैल्शियम पोटाश, कार्बोनेट, फास्फेट, जैसे कई पोषक तत्वो से सम्पन्न हैं अत: उर्वरक है।
3.काली मृदा कपास के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। इसे कपास की मृदा कहते है। इसी क्षेत्र में भारत में कपास का सर्वाधिक उत्पान उत्पादन होता है। इस मृदा महाराष्ट्र में रेगुरू या रेगड़ मृदा कहते है।
4.दकन ट्रेप संरचना में बॉक्साइट के जमाव मिलते है ।
5 इसमे गारनेट, तथा मणिक जैसे रंगीन पत्थर पाए जाते हैं। जिसका आर्थिक व्यवसायक उपयोग है।
→स्पष्टः दकन ट्रेप संरचना आर्थिक दृष्टिकोण से व्यापक सम्भावनाओं का क्षेत्र है विशेषकर यह काली मृदा का पाया जाना भारत के आर्थिक विकास को मजबूत आधार प्रदान करता है। यहाँ कपास के अतिरिक्त भी विविध प्रकार के फसलों की कृषि की जाती है। जलोढ़ मिट्टी के बाद यह भारत को दुसरा सर्वाधिक उर्वर मृदा और कृषि क्षेत्र है। भारत में सूती वस्त्र उद्योग के विकास का मुख्य आधार काली मृदा ही है। भारत विश्व में सूती वस्त्र उद्योग में अग्रणी राष्ट्र में आता है।
→दकन ट्रेप की चहोनो का व्यापक उपयोग सड़क एवं भक्त निर्माण सहित विविध निर्माण उद्योग में किया जाता है। इस तरह यह यरचना भारत के आर्थिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
टर्शियरी सरचंना→
→ टर्शियरी संरचना भारत के वृहद क्षेत्र में पाई जाती है। इसका विस्तार मुख्यत: हिमालय पर्वतीय प्रदेश में है। हिमालय की उत्पत्ति सियेनोजोइक महाकल्प में टर्शियरी सरंचना से ही हुई है।
→ यह अवसादी परतदार शैल सरंचना के रूप में स्थित है।
→ इसका विस्तार हिमालय पर्वतीय प्रदेश, तटवर्ती प्रदेश अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में है।
महत्व →
1.टर्शियरी संरचना से ही हिमालय की उत्पति हुई और हिमालय का व्यापक आर्थिक एवं पर्यावरणीय महत्व है।
2.इस संरचना में हिमालय क्षेत्र में चुना पत्थर एवं चीका खनिज के भंडार है।
3.भारत में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के भंडार टर्शियरी संरचना के क्षेत्र में ही है। भारत के प्रमुख पट्रोलियम क्षेत्र मुम्बई हाई, मुम्बई बेसिन क्षेत्र, खम्भात की खाड़ी एवं कलोल क्षेत्र, के.जी बेसिन (कृष्णा गोदावरी) क्षेत्र तथा असम मेघालय क्षेत्र इसी संरचना में स्थित है।
4.यह संरचना आर्थिक दृष्टिकोण से और विशेष कर ऊर्जा संसाधन के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है वर्तमान में परिवहन प्रणालीयो पेट्रोल एवं प्राकृतिक गैस पर ही मुख्यत: निर्भर है। घरेलू इंधन सहित ईंधन के विभिन्न स्रोत का मुख्य आधार पेट्रोलियम एवं पेट्रो उत्पाद है। इस दृष्टि से टर्शियरी सरंचना के क्षेत्रों में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस के नए भण्डार की खोज लाभकारी होगा।
5.भारत वर्तमान मे अपनी आवश्यकता का लगभग 85 प्रतिशत पेट्रोलियम आयात करता है यदि घरेलू स्तर पर नए भण्डारो की खोज और उपयोग प्रारम्भ होता है तब इससे आयात पर निर्भरता में कमी आने के साथ ही व्यापार संतुलन की दिशा मे भी कदम बढा सकेगा।
क्वार्टरनरी संरचना→
→ नियोजोइक महाकल्प मे मुख्यत: नदियो द्वारा लाए गए मलवो के निक्षेप से क्वार्टरनरी संरचना का निर्माण हुआ इसकी उत्पत्ति प्लीस्टोसीन मे होलोसीन काल तक जलोढ संरचना के रूप में हुई है।
→इसका विस्तार मध्यवर्ती मैदानी प्रदेश और तटवर्ती मैदानी प्रदेश में वृद्ध क्षेत्र में है।
महत्व:- 1.यह संरचना उर्वर जलोढ़ मृदा के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है इस मृदा में प्राय: सभी प्रकार के फसलो की कृषि की जाती है।
2.इसी क्षेत्र में भारत के हरित क्रांति के क्षेत्र भी स्थित है।
3.इस संरचना के प्रदेश में ही भारत की सर्वाधिक जनसंख्या निवास करती है।
4. यह प्रदेश कृषि की व्यापक संभावनाओं का प्रदेश हैं यहाँ कृषि आधारित खाद्य प्रशस्करण उद्योगों के विकास की व्यापक सम्भावना है।
5. यहां पशुपालन, मत्स्यपालन जैसी क्रियाए भी प्रमुखता से की जाती है।
दोस्तो भारत की भौतिक भू गर्भिक संरचना समाप्त होती है अगले artical में हम भारत के भौतिक प्रदेश पढ़ेंगे।
आप basic geography पर क्लिक कर के basic geography का अध्ययन कर सकते है।
Basic geography वाले artical का link -Basic geography link
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प्रश्न 1. निम्नलिखित में भारत में कोयला उत्पन्न करने वाला भोमिकीय समूह है- IAS 1994, 1998
(a) धारवाड़
(b) विन्ध्यन
(c) कुडप्पा
(d) गोंडवाना
प्रश्न 2.भारत के दक्कन के पठार पर बेसाल्ट निर्मित लावा शैलों का निर्माण हुआ है-UKPSC, 2012
(a) क्रिटेशियस युग में
(b) प्लीस्टोसीन युग में
(c) कार्बोनीफेरस युग में
(d) मायोसीन युग में
प्रश्न 3. लघु हिमालय स्थित है मध्य में-
(a) ट्रांस हिमालय और महान हिमालय।UKPSC, 2006
(b) शिवालिक और महान हिमालय
(c) ट्रांस हिमालय और शिवालिक
(d) शिवालिक और बाह्य हिमालय
प्रश्न 4. निम्न में से कौन-सा कथन असत्य है?UP Lower Sub (Pre), 2004
(a) भौमिकीय दृष्टि से प्रायद्वीप क्षेत्र भारत का सबसे प्राचीन भाग है।
(b) हिमालय विश्व में सबसे नवीन वलित (फोल्डेड ) पर्वतों को प्रदर्शित करते हैं।
(c) भारत के पश्चिमी समुद्र तट का निर्माण नदियों की जमाव के द्वारा हुआ है।
(d) भारत में गोंडवाना शिलाओं में कोयले का वृहत्तम भंडार है।
प्रश्न 5. गोंडवानालैंड के टूटने का क्रम प्रारंभ हुआ-UPPCS (Mains), 2002
(a) परमियन युग में
(b) जुरैसिक युग में
(c) क्रिटेशियस युग में
(d) ट्रियासिक युग में
प्रश्न6. शिवालिक श्रेणी का निर्माण हुआ-42nd BPSC, 1997
(a) इयोजोइक में
(b) पैलियोजोइक में
(c) मेसोज़ोइक में
(d) सेनोज़ोइक में