drishti ias notes in hindi - UPSC और PCS के भारत की भौतिक भूगोल के free नोट्स

नमस्कार दोस्तों, आज इस artical में भारत के भौतिक भूगोल के बारे में बताया जायेगा , ध्यान रहे की इस शुरुआत में हम आधारभुत भूगोल (basic geography ) को पढ़ेंगे, जिस की सहायता से आप भारत की भौतिक संरचना की उत्पप्ति को आसानी से समझ पाएंगे। इसके  बाद आने वाले articals में हम perpect रूप से अपने गंभीर विषय भौतिक भूगोल की शुरुआत करेगे। हमारे यह artical,  Dristi IAS,vision IAS, निर्माण IAS, योजना IAS ओर उत्कर्ष IAS जैसी कोचिंग के notes को मिला जुला कर एक बहुत बेहतर तरीके के नोटेस् बनाये गये है, जिनसे आपकी सफलता की संभावना बढ़ जाती है।

 यह  pcs exam, ssc exam  एवं अन्य एग्जाम के लिए भी उतने ही महत्वपूर्ण है जितने ias के exam के लिए है। इन notes में pre परीक्षा के प्रश्नों को highlight किया गया है जिससे आपको पढ़ने में बिल्कुल भी तकलीफ नहीं होगी और अच्छे अंक आने की संभावना भी बढ़ेगी, इसमे कठिन टर्मलोगी को भी परिभाषित किया गया है और notes को मैप एवं digram की सहायता से समझाया गया है जिससे आपको को notes को समझने में भी आसानी होगी। तो फिर चलिए basic भूगोल को पढ़ना प्रारम्भ करते है :- 

drishti ias notes in hindi -


आधारभूत भूगोल (basic geograpy)  :-

   आधारभूत भूगोल

• पृथ्वी की उत्पत्ति 
•  बह्माण्ड की उत्पत्ति

→ पृथ्वी के चारो ओर स्थित अनंत आकाश को बह्माण्ड कहते है इसमे स्थित पिडों को बह्याण्डीय पिडं कहते है जैसे गृह, उपग्रह, तारे इत्यादि।


बह्माण्ड की उत्पत्ति के लिए मान्यता प्राप्त सिद्धांत महाविस्फोट सिद्धान्त या बिगं बेगं सिद्धान्त (Big Bang Theory) था इसे जार्ज लिमेत्र ने दिया था ।

बह्माण्ड की उत्पत्ति जिस सुक्ष्म पदार्थ कणों से हुई है, उसे हिग्स बोसोन या ईश्वरीय पदार्थ (God partical) कहते है।

→ यह मान्यता है कि ब्रह्माण्ड में पहले से पदार्थ मौजूद थे जिनमें गति उत्पन्न हुई और तापमान में वृद्धि के कारण महाविस्फोट हुआ इस से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई।

→ विस्फोट के कारण अधिक घनत्व के पदार्थों से असंख्य नाभिको का निर्माण हुआ इसके चारों और पदार्थों के एकत्रित होने से ब्रह्माण्ड के पिण्डो की उत्पत्ति हुई। पृथ्वी भी इसी प्रक्रिया से बनी है।


→ पृथ्वी उत्पत्ति के समय अत्यन्त गर्म अवस्था मे थी, इससे ऊर्जा का उत्सर्जन होता रहा जिसके कारण यह ठंडी और संकुचित हुई इसके कारण पृथ्वी की ऊपरी ठोस परत भू-पटल का निर्माण हुआ ।

→हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के संयोग से  पृथ्वी पर जल की उत्पत्ति हुई ।

→हाइड्रोजन एवं हीलियम से पृथ्वी का प्राथमिक वायुमण्डल 
बना ।

महाद्वीपीय विस्थापन

महाद्वीपीय विस्थापन एक ऐसी अवधारणा है जिसमे यह माना गया की विश्व के वर्तमान महादीपों की उत्पत्ति एक वृहद महाद्विप पैंजिया से हुई है।

इसमें यह माना गया की विश्व के वर्तमान महासागरो एवं सागरो की उत्पत्ति एक वृहद महासागर पैंथालसा के जल से हुई।

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त बैगनर' द्वारा 1912 में दिया गया था

→ पेंजिया महाद्वीप में पृथ्वी की आंतरिक शक्तियो के कारण विखंंडन हुआ इससे उत्तर में अंगारा लैण्ड और दक्षिण में गोंडवाना  लैण्ड की उत्पत्ति हुई दोनो के मध्य पैंथालसा के जल के प्रवेश करने से टेथिस सागर का निर्माण हुआ।

→ पृथ्वी की आंतरिक शाक्तियों के कारण अंगारा लैण्ड एवं गोडवाना लैण्ड में विखण्डन हुआ इन विखण्डीत भू-खण्डो में विस्थापन होने से वर्तमान के महाद्वीपों की उत्पत्ति हुई।

→ महाद्वीपो के मध्य पैंथालसा के जल के प्रवेश करने से वर्तमान के महासागर एवं सागरो का निर्माण हुआ।


→ अंगारा लैण्ड से उत्तरी अमेरिका, यूरोप, चीन, रूस, के क्षेत्रों का निर्माण हुआ।

→ गोंडवाना लैण्ड से दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, प्रायद्वीपीय पठारी भारत, ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका का निर्माण हुआ ।

→ प्रशांत महासागर पैंथालस सागर का बचा बडा भाग है।

 →भूमध्य सागर टेथिस सागर  का अवशेष है । 

→ हिमालय पवर्तीय क्षेत्र टेथिस सागर के क्षेत्र में ही स्थित है।

→ पृथ्वी की आंतरिक संरचना की मुख्य 3 परते है ।
   1. भू पटल ( 33 km तक)
   2. मेंटल     ( 33 से 2900 km तक )
   3. कोर    ( 2900 से 6371 km तक )

     
   → पृथ्वी की त्रिज्या  6371 km है।
  
 *अंतर्जात बल*
 
→ पृथ्वी के भू-गर्भ से या आतंरिक भागो से उत्पन्न होने वाले बल को अंतर्जात बल कहते है।

Note -  गहराई के साथ दाब, ताप, एवं घनत्व  तीनो में वृद्धि होती है।

→ पृथ्वी की सतह से गहराई की और तापमान में वृद्धि होने के कारण लगभग 100 किलोमीटर की गहराई के बाद चट्टानें अधिक तापमान के कारण पिघलने लगती है फलस्वरूप अर्द्धतरल अवस्था की परत का विकास होता है। जिसे प्लास्टिक दुर्बल मण्डल कहते है।

→ प्लास्टिक दुर्बल मण्डल की स्थिति ऊपरी मेंटल में लगभग 100 से 100 किलोमीटर की गहराई में है। ( मुझे यहा पर कुछ स्टूडेंट्स के confuse होने की संभावना है इसलिए मैं पहले ही बता दू यह लाइन बिल्कुल सही है)

‌→ प्लास्टिक दुर्बल मण्डल  के ऊपर अपेक्षाकृत कम घनत्व की ठोस परत स्थल मण्डल स्थिति है।

→ स्थलमण्डल प्लास्टिक दुर्बल 'मण्डल के ऊपर अस्थिर अवस्था में है।

प्लास्टिक दुर्बल मण्डल से अधिक तापमान के कारण तापीय  ऊर्जा तरंगो की उत्पत्ति होती है यह चक्रीय रूप से गमन करती है। इसे संवहनिक तापीय ऊर्जा तरं‌ग कहते है।

 

→संवहनिक ऊर्जा तरंगो के कारण ही स्थल मंडल में एवं भूपटल के ऊपर विभिन्न प्रकार की भू-गर्भिक क्रियाए घटित होती है जैसे - विखण्डन, विस्थापन, भूकम्प, ज्वालामुखी, वलन, भ्रंशन इत्यादि घटित होती हैं।

→ भू-गर्भिक तापीय ऊर्जा तरंग अत्यंत प्रभावी बल होते है जिन्हे अंतरर्जात  बल कहते हैं। 

→ पृथ्वी में सतह से गहराई की और तापमान में वृद्धि के बावजूद केन्द्रीय ठोस अवस्था मे पाई जाती है, इसका कारण अधिक गहराई पर पदार्थो के घनत्व में वृद्धि के कारण चट्टानों के द्रव्यणांक (गलणांक) का बढ़ जाना है।

प्लेट विवर्तनिकी :-

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त 1960 के दशक में कई भूगोल वेत्ता एवं  वैज्ञानिकों के संयुक्त प्रयास से हुआ इस सिद्धान्त का आधार हेरी हेस द्वारा 1960 के दशक में दिए गए सागर नितल प्रसरण सिद्धान्त है।

→ सागर नितल प्रसरण सिद्धान्त में पहली बार वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर यह बताया गया की सागर नितल मे भी विखंडन और विस्थापन होता है।

प्लेट शब्द का प्रयोग टूजो विल्सन द्वारा किया गया।

1968 में मार्गन ने प्लेट की  गतिशीलता से सम्बंधि विभिन्न कार्यो को एक सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया। जिसे प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत कहते है।

प्लेट :-  स्थल मण्डल कई गतिशील भूखण्डो में विभक्त है, जिसे प्लटे कहते है।

→ दो प्लेटो को  विभाजित करने वाली रेखा (ज्यामिती रेखा) को प्लेट सीमा कहते हैं।

→ प्लेट सीमा के दोनों और स्थित क्षेत्रों को प्लेट सीमांत कहते हैं।

प्लेट सीमान्त पर प्लेटो की गतिशीलता का सर्वाधिक प्रभाव  होता है और यही सर्वाधिक भू-गर्भिक क्रियाए  घटित होती है इन्हें वितर्निक क्रिया कहते है। भूकम्प, ज्वालामुखी इत्यादि  विवतर्निक क्रियाएं है।

विवतर्निक क्रियाओं से प्रभावित क्षेत्रो को विवर्तनिक क्षेत्र कहते हैं।

प्लेटो के प्रकार एवं गति :-

→ प्लेट तीन प्रकार की होती है।

- 1. महाद्वीपीय प्लेट

- 2. सागरीय प्लेट

- 3.महाद्वीप सह सागरीय प्लेट

-  सागरीय प्लेट का घनत्व सर्वाधिक होता है।
-  महाद्विप प्लेट का घनत्व कम होता है।
-  प्लेटो में तीन प्रकार की गतिया पाई जाती है।

अपसारी गति :- इसमे दो प्लेटे एक दूसरे से विपरीत दिशा में गतिशील होती है। 
अभिसारी गति :- अभिसारी गति में दो प्लेटे एक दूसरे की और गति करती है और टकराती है।
रूपांतरण गति \ सरंक्षी गति :-। रूपांतरण गति में दो प्लेट एक दूसरे के समानांतर और विपरीत रगड़ते हुए गुजरती है। 
प्लेट की संख्या तथा मुख्य प्लेट

NASA के अनुसार 100+ प्लेट है।

इनमे 7 मुख्य प्लेट है।

 उ. अमेरिकन प्लेट

द. अमेरिकन प्लेट

अफ्रीकन

भारतीय प्लेट या इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट

यूरेशियन प्लेट

अण्टार्कटिका प्लेट

प्रशांत प्लेट


जब दो प्लेट एक दुसरे से विपरीत दिशा में गमन करती है तब स्थल मण्डल में विखण्डन और विस्थापन होता है। विखण्डन के कारण उत्पन्न दरार के सहारे भूगर्भ का पिघला हुआ पदार्थ या मैग्मा के सतह पर आने से ज्वालामुखी क्रिया घटित होती है, सागर नितल की उत्पत्ति भी इसी प्रक्रिया से हुई हैं इसके कारण ही सागर नितल में बेसाल्ट की चट्टाने पाई जाती है।

→ जब दो प्लेटे अभिसरण करती है या टकराटी है तब अधिक घनत्व की प्लेट का कम घनल की प्लेट के नीचे क्षेपण(नीचे जाना) जबकि कम घनत्व के प्लेट में वलन की क्रिया होती है। इसके कारण ही वलित पर्वत की उत्पप्ति होती है।
बहिर्जात बल 
   पृथ्वी के बाहर से या बाह्य क्षेत्र से लगने वाले बल' को बहिर्जात बल कहते है। इसके कारण चट्‌टानों में टूटकूट विखण्डन तथा विघटन की क्रिया घटित होती है। इन क्रियाओ को आनाच्छादन (Deniedation) कहते हैं।

 →आनाच्छादन समतल स्थापक बल है और यह स्थलाकृतियों में समतलीकरण का कार्य करता है।
           
→ पृथ्वी की सतह पर उपस्थित भौतिक  आकृतियों को स्थलाकृति कहते हैं।

आनाच्छादन दो रूप में घटित होती है।

1. अपक्षय (Weathering) 2. अपरदन (Erosion)

अपक्षय एक ऐसी क्रिया है जिसमे बाह्य कारकों से चट्टानो में विखण्डन या कमजोर पड़ने की क्रिया घटित होती है, लेकिन विखण्डीत पदार्थों का अधिक दूरी तक विस्थापन नहीं होता। अत: यह एक स्थैतिक प्रक्रम है।

→ अपरदन गतिशील कारको के प्रभाव से चट्टानों में टूटफूट और विखण्डन की ऐसी क्रिया है जिसमे विखण्डीत पदार्थों का अधिक दूरी  तक परिवहन / स्थानान्तरण होता है। इसे गत्यात्मक प्रक्रम कहते है।

→ निक्षेपण अपरदन का भाग नहीं है निक्षेपण अपरदन का परिणाम है।

→ अपरदित पदार्थों का स्त्रोत क्षेत्र से दूर जमा होने  या एकत्रित होने की प्रक्रिया को निक्षेपण कहते है।

भू आकृतियों के निर्माण, विकास तथा इनमें परिवर्तन या रूपान्तरण की प्रक्रिया को भू-आकृति प्रकरम कहते है।

→ भू-आकृति प्रक्रम के अंतर्गत दो क्रियाए घटित
    होती है
   (i)भू-संचलन

‌‌   (ii)आनाच्छादन

→ पृथ्वी के अन्तर्जात बल के कारण भू-पटल में घटित होने वाली भू- गर्भिक क्रियाओं को भू-संचलन कहते हैं। उत्थान, भ्रंशन, भूकम्प, वरन, ज्वालामुखी जैसी क्रियाएं इसमें आती है।

आनाच्छादन बाह्य बलो या बहिर्जात बलों के कारण समतलीकरण की क्रिया है।

 → अन्तरजात बल एवं बहिर्जात बल की अन्त: क्रिया को भू-आकृति, प्रक्रम कहते हैं। पृथ्वी की सतह पर स्थित कोई भी भौतिक आकृति, भू आकृति प्रकरम के हि परिणाम होते है।

- भारत में किस संरचना का निर्माण कौनसे महाकल्प, काल और किस समय हुआ है, इसलिए उसे निम्न सारणी द्वारा समझाया गया है:-

पृथ्वी का भूगर्भिक समय - सारणी :-

  महाकल्प         कल्प/काल           आयु          भारत में संरचना
                         / समय

1. एजोइक      आर्कीयन         250 करोड़ वर्ष   आर्कियन
                                               पूर्व (cbc)      संरचना

                     प्री केम्ब्रियन      150 cbc           धारवाड़ संरचना 
                                                                    कुडप्पा संरचना
                                                                    विंध्ययन संरचना

2. पेल्योजोइक   केम्ब्रियन        60cbc         __(कुछ नही)x __
  (प्रथम जीव     आर्डोविसियन  55cbc          हिमालय की 
      कल्प)        सिलुरियन        50cbc        प्रारंभिक चट्टानों का
                      डिवोनियन        44cbc      निर्माण प्रारंभ(तीनो में)

                      कार्बोनिफेरसरस  35cbc    गोंडवाना संरचना
                      पर्मियन             27cbc    _____//______

3. मेसोजोइक    ट्रीयाशिक          22cbc        (कुछ नही)
 (द्वितीय जीव    जुरेशिक            18 cbc       (कुछ नही)
     कल्प)         क्रिटेशियस        13.5cbc     दक्कन ट्रेप संरचना

4. सियेनोजोइक  पैलियोसीन       7cbc          टर्शियरी संरचना
(तृतीय जीव        इयोसीन           से                (हिमालय की 
   कल्प)             ओलिगोसीन    10 लाख       प्रारंभिक चट्टानो 
                         मायोसिन        Bc तक          का निर्माण, पांचों
                         प्लायोसीन       (पांचो में)             में) 

5. नियोजोइक    प्लीस्टोसीन     (10 लाख वर्ष    क्वार्टरी संरचना 
(नूतन जीव                               पूर्व से 10,000    (जलोढ 
कल्प,चतुर्थक                              वर्ष पूर्व तक)      संरचना)
जीव कल्प)
                         होलोसीन         (10,000 वर्ष      (क्वार्टरी  
                                                 वर्तमान समय     संरचना)
                                                     तक)
Note:- यह समय सारणी समय के साथ समझ में आ जाएगी पर महत्वपूर्ण बात यह है की इसे याद करना होगा क्योंकि इसी से आगे की संरचनाओ के निर्माण समझ में आएंगे।

दोस्तो upsc indian physical geography ke notes की besic भूगोल खत्म हो गयी है, इसके बाद वाले articals हम भारत के भौतिक भूगोल की शुरुआत करेंगे।

उपयुक्त artcal में कोई भी प्रकार का doubt होतो whatsapp पर मैसेज कर सकते हो
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FAQ 

Ques 1 - अंतर्जात बल व बहिर्जात बल में से ज्यादा हानिकारक क्या होता है?
Ans - अंतर्जात बल |

Ques 2 -  यह नोट्स prilims एग्जाम की लिए भी उपयोगी है क्या?
Ans - प्री और mains दोनो के लिए।

Ques 3 इन नोट्स को पढ़ने के बाद ncert पढ़ना जरूरी है क्या?
Ans - नही, इनमे महत्वपूर्ण सामग्री शामिल है इसलिये ncert की आवश्यकता नही है।
Ques 4 - sir यूपीएससी का सिलेबस में इस साल कोई परिवर्तन हुआ है क्या?
Ans नही |

Ques 5 - इन notes को पढ़ कर अच्छी रैंक लाई जा सकती है ?

Ans - आसानी से लाई जा सकती है। बस इनको बार बार रिवाइज करना है।

Ques 6- हिंदी medieum से टॉप किया जा सकता है क्या?
Ans - हा। उदाहरण रवि कुमार सिहाग और सुनील धनवंता।

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