हिमालय क्षेत्र में भूकंप एवं ज्वालामुखी :-
हिमालय पर्वतीय प्रदेश की भौगोलिक स्थिती विनाशात्मक प्लेट सीमांतो पर स्थित है जहाँ भारतीय प्लेट और युरेशियन प्लेट में अभिसारी क्रिया घटित हो रही है।
अभिसारी सीमांतो के क्षेत्र भूकम्प एवं ज्वालामुखी के प्रति संवेदनशील होते हैं लेकिन हिमालय मे भूकंप उत्पन्न होता है जबकि इसे ज्वालमुखी मुक्त क्षेत्र माना जाता है यहाँ ज्वालामुखी क्रिया घटित नहीं होती।
यहां भूकम्प आने के निम्न कारण है:-
1.भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट में अभिसारी क्रिया के कारण भू-पटल की चट्टानों में दबाव से अव्यवस्था का उत्पन्न होना।
2.कम घनत्व के यूरेशियन प्लेट में वलन की क्रिया के कारण अव्यवस्था उत्पन्न होना।
3.हिमालय एक नवीन वलित पर्वत है और इसमें वर्तमान में भी उत्थान की क्रिया जारी है। अत: भूकम्प के प्रति संवेदनशीलता बनी रहती है।
4. यहाँ अधिक घनत्व के भारतीय प्लेट में क्षेपण की क्रिया के कारण चट्टानों में विखण्डन होने से भूकम्प की सम्भावना बनी रहती है।
5.यहां भारतीय प्लेट में क्षेपण के साथ अधिक गहराई में प्लेट सीमांत के पिघलने से उत्पन्न मैग्मा के सतह की और आने की प्रक्रिया के कारण भी अव्यवस्था उत्पन्न होती है।
→ इन्ही कारणों से हिमालय भारत का भूकम्प प्रभावित सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र जाॅन v (five)में आता है।
हिमालय में ज्वालामुखी क्रिया नहीं होने के कारण :-
1. इस क्षेत्र में भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट का सीमांत भाग महाद्वीपीय प्रकृति की है अत: भारतीय प्लेट में क्षेपण की दर कम है।
2.यहाँ भू-गर्भ मे उत्पन्न मैग्मा सतह को तोड़ पाने में सक्षम नहीं है।
3 यूरेशियन प्लेट की मोटाई का अधिक होना और तिब्बत के पठार की अधिक ऊंचाई मैग्मा के उद्गार मे बाधक है।
4. हिमालय क्षेत्र की समुद्र से दूरी भी एक कारण अधिकांश ज्वालामुखी उद्गार में मैग्मा के साथ उत्सर्जित गैसो में जलवाष्प की सर्वाधिक मात्रा होती है। जलवाष्प, एवं गैस मैग्मा को सतह की ओर लाने में और गति को तीव्र करने में योगदान देता है। हिमालय क्षेत्र में भूमिगत जल का अभाव भी जलवाष्प के निर्माण में बाधक है।
हिमालय का भूस्खलन के प्रति संवेदनशील होने का कारण :-
भूस्खलन:- भूस्खलन एक ऐसी घटना हे जिसमें पर्वतीय पठारी ढालो के सहारे मृदा एवं चट्टानों में वृहद मात्रा में स्खलन या विस्थापन होता है। हिमालय भू-स्खलन के प्रति भारत का सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र है यह उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में मानव आबादी के क्षेत्र भूस्खलन से सर्वाधिक प्रभावित होते है।
हिमालय का भू-स्खलन के प्रति अधिक संवेदनशीलता होने के कारण निम्न है:-
1.यह क्षेत्र वर्षा एवं हिमानीयों के पिघलने से पर्याप्त जल प्राप्त करता है और जल का मृदा एवं चट्टानो मे प्रवेश करना भू-स्खलन का आधारभूत कारण है।
2. हिमालय की चट्टाने टर्शियरी संरचना की मुख्यतः अवसादी परतदार चट्टान के रूप में है। इन चट्टानो में परतो के साथ घनिष्ठता पाई जाती है अत: वर्षा जल और हिम के पिघलने से प्राप्त जल का इसमें प्रवेश आसानी से हो जाता है इससे चट्टाने कमजोर हो जाती है।
4.हिमालय का नवीन वलित पर्वत होना , उत्थान कि क्रिया का जारी रहना, भूकम्प के प्रति संवेदनशील होना जैसे प्राकृतिक कारक भी उत्तरदायी है।
इन प्राकृतिक कारकों के अतिरिक्त कई मानवजनित कारक भी उत्तर दायी हैं जैसे - वन विनाश, निर्माण कारी कार्य, खनन, पर्यटन केन्द्रो का विकास तथा जनसंख्या का बढता हुआ दबाव इत्यादि ।
हिमालय की उत्पत्ति :- हिमालय एक नवीन वलित पर्वत है जिसकी उत्पत्ति अल्पाईन भू-संचलन के परिणाम स्वरूप अंतिम क्रिटिशियस काल से टर्शियरी काल तक कई क्रमिक उत्थानों के परिणाम स्वरूप हुई है, टर्शियरी काल में इसके वर्तमान स्वरूप का निर्धारण होने के कारण इसे टर्शियरी पर्वत भी कहते है।
हिमालय की उत्पत्ति की प्रक्रिया दो मुख्य भू-गर्भिक क्रियाओं से सम्बन्धित है।
1. टेथिस सागर या टेथिस भू-सन्नति की उत्पत्ति
2. प्लेट विवर्तनिकी
पैंजिया के विखण्डन के बाद अंगारा लैंड एवं गोडवाना लैंड की उत्पत्ति के साथ दोनो के मध्य में टेथिस सागर की उत्पत्ति हुई यह प्राचीनतम भू-सन्नति के रूप में था ।
भू-सन्नतिया कम गहरी, लम्बी, सकरी, जब से भरी हुई गर्त होती है भू वैज्ञानिको ने यह माना है कि नवीन वलित पर्वतों की उत्पत्ति का आधार कर भू-सन्नतिया ही है।
टेथिस भूसन्नति मे अवसादीकरण की प्रक्रिया से मलवो का निक्षेप हुआ इससे चट्टानों मे इससे अवसादी परतदार चट्टाने बनी। इन्ही चट्टानों में दबाव के कारण वलन होने से वलित पर्वतों की उत्पत्ति प्रारम्भ हुई। हिमालय का निर्माण टेथिस सागर के मलवो में वलन से प्रारम्भ हुई।
टेथिस सागर के मलवों मे वलन का कारण भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट मे अभिसारी क्रिया थी ।
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुसार भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट मे अभिसरण के कारण टेथिस सागर के मलवो में वलन प्रारम्भ होने के उपरान्त अधिक घनत्व के भारतीय प्लेट में कम घनत्व के यूरेशियन प्लेट के साथ क्षेपण प्रारम्भ हुआ जबकि कम घनत्व के यूरेशियन प्लेट मे वलन की क्रिया घटित होने से हिमालय के वर्तमान स्वरूप का निर्धारण हुआ इसी कारण हिमालय मे अवसादी परतदार चट्टानों के साथ पृथ्वी की प्रारम्भिक चट्टाने ग्रेनाइट, नीस, और सीम्त भी पाए जाते हैं।
वर्तमान मे भी भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट में अभिसारी क्रिया जारी है अत: हिमालय में उत्थान की प्रक्रिया भी जारी है।
हिमालय में तीन मुख्य उत्थान और छोटे-बड़े पाँच उत्थान स्वीकार किए जाते हैं। प्रथम उत्थान अंतिम क्रिटेशियश से इयोसीन काल तक हुई जिसमे वृहद हिमालय का निर्माण प्रारम्भ हुआ।
इयोसीन से ओलिगोसीन काल तक दुसरा उत्थान हुआ व इसमें भारत के हिमालय क्षेत्र में विशेष प्रभाव नही हुआ।
तीसरा उत्थान मध्य मायोसीन काल में हुआ यह सबसे वृहद उत्थान था इस समय वृहद हिमालय की ऊंचाई में वृद्धि हुई तथा मध्य हिमालय का निर्माण हुआ इस समय ही ट्रांस हिमालय वर्तमान स्वरूप में आया ।
मायोसीन से प्लायोसीन काल तक चौथा उत्थान हुआ इस समय मध्य हिमालय और अन्य क्षेत्रो की ऊंचाई मे वृद्धि हुई तथा शिवालिक हिमालय का निर्माण आरम्भ हुआ अंतिम एवं पांचवा उत्थान प्लायोसीन से प्लीस्टोसीन काल तक हुआ और इस समय शिवालिक की उत्पत्ति हुई।
Students इस artical में हमने हिमालय के क्षेत्र में भूकंप एवं ज्वालामुखी संबंधी आवश्यक तत्वों और हिमालय की उत्पत्ति को समाप्त कर लिया है इसके बाद वाले artical में हिमालय के महत्व और चर्चा की जाएगी।